साहित्यातील ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेत्या पद्मभूषण, पद्मविभूषण हिंदीतील अत्यंत प्रतिभावान कवयित्री महादेवी वर्मा. त्यांना हिंदी साहित्य जगतातील छायावादी युगाच्या चार प्रमुख स्तंभांपैकी एक समजले जाते. आधुनिक हिंदीच्या समर्थ कवीं असल्यामुळे त्यांना 'आधुनिक मीरा' पण म्हंटले जाते. कवी निराला ह्यांनी तर त्यांचा हिंदीच्या विशाल मंदिरातील सरस्वती असा उल्लेख केला आहे. महादेवी वर्मा जी यांची आज पुण्यतिथी त्यांना विनम्र अभिवादन. इतिहासाने त्यांची लपवलेली एक कविता "मैं हैरान हूँ”
"मैं हैरान हूँ”– इतिहास में छिपाई गई - महादेवी वर्मा की एक कविता
”मैं हैरान हूं, यह सोचकर,
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली?
तुलसी दास पर,
जिसने कहा , “ढोल ,गंवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।
”मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने क्यों नहीं जलाई
“मनुस्मृति” जिसने पहनाई उन्हें गुलामी की बेड़ियां?
मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा?
उस “राम” को जिसने गर्भवती पत्नी सीता को,
परीक्षा के बाद भी निकाल दिया घर से बाहर धक्के मार कर।
किसी औरत ने लानत नहीं भेजी उन सब को,
जिन्होंने "औरत को समझ कर वस्तु” लगा दिया था दाव पर होता रहा “नपुंसक” योद्धाओं के बीच समूची औरत जाति का चीरहरण ? महाभारत में ?
मै हैरान हूं, यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं किया?
संयोगिता अंबा -अंबालिका के दिन दहाड़े,
अपहरण का विरोध आज तक!
और मैं हैरान हूं , इतना कुछ होने के बाद भी क्यों अपना “श्रद्धेय” मानकर पूजती हैं मेरी मां – बहने उन्हें देवता – भगवान मानकर?
मैं हैरान हूं, उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या अंध श्रद्धा,
या फिर मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा ?”
महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,
क्यों कि यह भारतीय (तथाकथित आदर्श मनुवादी) संस्कृति पर गहरी चोट करती है ?
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